बस्तर दशहरा में शामिल होने मावली माताजी को न्योता देने बस्तर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव सहित अन्य सदस्य शुक्रवार को दंतेवाड़ा पहुंचे। यहां पहले मां दंतेश्वरी मंदिर और फिर मावली माताजी के मंदिर में विधि-विधान से पूजा अर्चना की। बस्तर दशहरा में शामिल होने का न्योता दिया। कमलचंद भंजदेव ने कहा कि यह परंपरा करीब 600 साल पुरानी है। पंचमी के दिन मां दंतेश्वरी को न्योता दिया जाता है। जिसे मंगल न्योता कहा जाता है।
राज परिवार का सदस्य होने के नाते मैं एक पत्रक लेकर आता हूं, और मां दंतेश्वरी और मां मावली से निवेदन करता हूं कि वे बस्तर दशहरा में शामिल होने जगदलपुर आएं। जब वे आएंगी तो मैं उनकी पूजा अर्चना करूंगा। उनका स्वागत करूंगा। पहले के जमाने में निमंत्रण चांदी के पत्रक में लिखा जाता था। लेकिन, अब जो पत्र हम भेंट करते हैं वो एक चमकीले कपड़े में लिखा होता है। कपड़ा बेहद पतला होता है। हालांकि, कपड़े में स्याही या अन्य किसी पेन कलम का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
आने-जाने में इस बार 28 जगह ठहरेगी पालकी
अष्टमी को माताजी की डोली दंतेवाड़ा से रवाना होगी। दंतेवाड़ा से जगदलपुर जाने और वापसी के दौरान कुल 28 जगह ठहराव होगा। जगदलपुर जाने के दौरान – गीदम में हारम चौक, पुराना मार्केट गीदम, बास्तानार (मुख्य सड़क स्कूल के पास), कोडे़नार मुख्य सड़क छात्रावास के पास, थाना के सामने, दुर्गा मंडप, डिलमिली (काटा कांदा दंतेश्वरी मंदिर), तोकापाल दुर्गा मंदिर, बाजार पारा दुर्गा मंदिर, जिया डेरा जगदलपुर (विश्राम स्थल) में ठहरने की व्यवस्था की जाएगी।
जगदलपुर से दंतेवाड़ा वापसी के दौरान- जगदलपुर, तेतरखुटी गंगनादई मंदिर, धुरवा समाज देवी स्थल, वन विद्यालय, भैरम मंदिर,-(फॉरेस्ट नाका), पण्डरीपानी मंदिर (पुराना सीमेंट फैक्ट्री से चार स्थानों पर), केशलूर चौक, तोकापाल, बाजार पारा दुर्गा मंदिर, मेन रोड देवी स्थान चबूतरा, दुर्गा मंदिर, आरापुर (मुख्य सड़क पर), डिलमिली काटा कांदा (छत्र के साथ डोली ठहरने का स्थान), गीदम पनेड़ा रोड चौक साहू समाप्त पूजा स्थल, कारली (मुख्य सड़क में बरगद पेड़ के पास, चीता लंका सलवा जुडूम कैम्प, आंवराभाटा मांई जी का रात्रि विश्राम स्थल, दंतेवाड़ा (विश्राम पश्चात दूसरे दिवस संध्या में आंवराभाटा से माई जी की डोली व छत्र मंदिर में वापसी होगी।
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- "जय जोहार" आशा करती हूँ हमारा प्रयास "गोंडवाना एक्सप्रेस" आदिवासी समाज के विकास और विश्व प्रचार-प्रसार में क्रांति लाएगा, इंटरनेट के माध्यम से अमेरिका, यूरोप आदि देशो के लोग और हमारे भारत की नवनीतम खबरे, हमारे खान-पान, लोक नृत्य-गीत, कला और संस्कृति आदि के बारे में जानेगे और भारत की विभन्न जगहों के साथ साथ आदिवासी अंचलो का भी प्रवास करने अवश्य आएंगे।
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